बकरा ईद (ईद-उल-अज़हा) की पूरी जानकारी 2025
बकरा ईद या ईद-उल-अज़हा इस्लाम का सबसे बड़ा और पाक त्योहारों में से एक है। यह त्यौहार हर साल इस्लामी कैलेंडर के ज़िल-हिज्जा महीने की दसवीं तारीख को मनाया जाता है। इस दिन मुसलमान अल्लाह की रज़ा के लिए जानवरों की कुर्बानी करते हैं।
बकरा ईद क्यों मनाई जाती है?
इस त्योहार की जड़ें हज़रत इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) की कहानी में हैं। अल्लाह ने हज़रत इब्राहीम को एक बहुत बड़ा आज़माइश दी — अपने प्यारे बेटे हज़रत इस्माइल (अलैहिस्सलाम) को कुर्बान करने का आदेश। यह परीक्षा इतनी कठिन थी कि समझ पाना मुश्किल है कि उस वक्त उनके दिल में क्या गुज़र रही होगी।
जब हज़रत इब्राहीम ने अपने बेटे को कुर्बान करने के लिए चाकू उठाया, तो अल्लाह ने उन्हें एक बड़ा सा दुम्बा (भेड़) भेजकर बेटे की जगह कुर्बान करने को कहा। इसीलिए इस त्योहार को कुर्बानी का नाम दिया गया है।
हज़रत इब्राहीम और इस्माइल की कहानी विस्तार से
यह कहानी कुरआन और हदीस दोनों में बड़ी ही साफ़ और गहराई से आती है। हज़रत इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) को अल्लाह ने एक बेहद बड़ा इम्तिहान दिया। उन्होंने अपने सबसे प्यारे बेटे, हज़रत इस्माइल (अलैहिस्सलाम) को अल्लाह की राह में कुर्बान करने का हुक्म पाया।
यह फ़रमान इतना कठिन था कि इंसान समझ नहीं पाता कि उस वक्त उनके दिल में क्या गुज़र रही होगी। मगर हज़रत इब्राहीम और हज़रत इस्माइल दोनों ने पूरी आज़माइश को सब्र, भरोसे और ईमानदारी से सहन किया।
जब हज़रत इब्राहीम ने अपने बेटे को कुर्बान करने के लिए चाकू उठाया, तो अल्लाह ने फरिश्ते भेजे और एक बड़ा सा दुम्बा (भेड़) भेजकर बेटे की जगह कुर्बान करवा दिया।
यह इम्तिहान एक ऐसी मिसाल बन गया जो आज भी हर मुसलमान के लिए कुर्बानी का मतलब समझाता है।
कुर्बानी का मतलब क्या है?
कुर्बानी केवल जानवर काटने का नाम नहीं है, कुर्बानी का अर्थ है – अल्लाह की खुशी के लिए अपनी सबसे प्यारी चीज़ को त्यागना। यह केवल जानवर काटने तक सीमित नहीं है, बल्कि अपने नफ़्स, लालच, अहंकार और ग़लतियों को भी कुर्बान करना इसका मकसद है।
बकरा ईद कब मनाई जाती है?
बकरा ईद इस्लामी कैलेंडर के ज़िल-हिज्जा महीने की 10 तारीख को होती है। इस दिन से तीन दिन तक कुर्बानी की जा सकती है, यानी अगले 2 दिन (11वीं और 12वीं) तक कुर्बानी का समय रहता है। जिनको यौम अल-नहर और तीन दिन की अयाम उल-तकबीर भी कहा जाता है।
हर साल यह तारीख़ ग्रेगोरियन कैलेंडर से बदलती रहती है क्योंकि इस्लामी साल चाँद के चक्र पर चलता है।
कुर्बानी के लिए सही जानवर कौन से हैं?
- छोटे जानवरों में – बकरा (बकरी), भेड़, दुम्बा
- बड़े जानवरो में – बैल, ऊँट, भैंस
जानवरों का स्वस्थ होना, कम से कम एक साल का होना और कोई बीमारी न होना जरूरी है।
कुर्बानी करने का तरीका
- जानवर को साफ़-सुथरा और स्वस्थ होना चाहिए।
- कुर्बानी के दौरान “बिस्मिल्लाह, अल्लाहु अकबर” कहना ज़रूरी है।
- जानवर को एक तेज़ और दर्द कम करने वाले तरीके से काटा जाना चाहिए।
- कुर्बानी के बाद मांस को तीन हिस्सों में बांटना चाहिए – एक गरीबों को, एक रिश्तेदारों को और एक अपने लिए।
- जानवर को इस्लामी शरीयत के नियमों के अनुसार इंसाफ़ से काटना चाहिए ताकि उसे ज्यादा तकलीफ न हो।
बकरा ईद का सामाजिक और आर्थिक महत्व
कुर्बानी के मांस का वितरण गरीबों और ज़रूरतमंदों में होता है। यह त्योहार समाज में भाईचारे और एकता को बढ़ावा देता है। कुर्बानी के दौरान दान और इबादत की भावना मजबूत होती है।
बकरा ईद की नमाज़ और दुआएं
ईद की नमाज़ ज़िल-हिज्जा की 10 तारीख को सुबह पढ़ी जाती है। इसमें दो रकात होती हैं, जिनमें अपने लिए और समाज के लिए अल्लाह से दुआएँ मांगी जाती है फिर नमाज़ के बाद खुतबा (प्रवचन) होता है, फिर कुर्बानी की जाती है और लोग एक-दूसरे को ईद मुबारक कहते हैं।
इस्लाम में पशुओं के अधिकार
कुर्बानी के दौरान जानवरों के प्रति दया और इन्साफ़ की बहुत अहमियत है। जानवरों को पीड़ा देना या कष्ट पहुंचाना इस्लाम में मना है। जानवरों का सही देखभाल करना और उन्हें दर्द कम देना इस्लामिक शरीयत का हिस्सा है।
दुनिया भर में बकरा ईद कैसे मनाई जाती है?
अलग-अलग देशों में बकरा ईद के रीति-रिवाज थोड़े भिन्न होते हैं, लेकिन इसका मूल उद्देश्य एक ही रहता है — अल्लाह की रज़ा के लिए कुर्बानी देना। भारत, पाकिस्तान, सऊदी अरब, मिस्र, तुर्की, और अन्य मुस्लिम देशों में यह त्योहार धूमधाम से मनाया जाता है।
बकरा ईद से जुड़ी आम गलतफहमियां
कई लोग सोचते हैं कि कुर्बानी सिर्फ जानवर काटना है, जबकि असली मकसद अपने नफ़्स को कुर्बान करना है। साथ ही, पर्यावरण और पशु अधिकारों के प्रति सजग रहना भी जरूरी है।
आधुनिक दौर में कुर्बानी और पर्यावरण
कुछ लोग आज डिजिटल कुर्बानी या ऑनलाइन माध्यम से भी कुर्बानी करते हैं, जहां उनका पैसा गरीबों के लिए जानवर खरीदने और मांस वितरण में लगाया जाता है। डिजिटल कुर्बानी (दान के जरिए), ताकि पशुओं की संख्या में अनावश्यक वृद्धि न हो और पर्यावरण संतुलित रहे।
आखरी शब्द:
बकरा ईद (ईद-उल-अज़हा) न केवल एक धार्मिक त्योहार है बल्कि इंसानियत, त्याग और दया का पैगाम भी है। यह हमें अपने नफ़्स को काबू में रखने, दूसरों की मदद करने और अल्लाह की रज़ा हासिल करने की सीख देता है। यह त्योहार हमें सिखाता है कि अल्लाह के लिए अगर दिल सच्चा हो, तो हर कुर्बानी आसान हो जाती है।
इस्लाम में कुर्बानी की यह परंपरा हज़रत इब्राहीम और इस्माइल की क़ुरआनी कहानी से जुड़ी हुई है, जो सदियों से मुसलमानों के दिलों में एक गहरी छाप छोड़ती आई है।
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अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQ)
जो मुसलमान क़ुरबानी के लिए पैसे खर्च कर सकता है, तो उस पर कुर्बानी करना फर्ज है। अगर ज़ेवर है तो उन्हें बेचकर भी क़ुरबानी करना फ़र्ज़ हो जाता है।
बकरी, भेड़, गाय, ऊँट भैंस कुर्बानी के लिए कुर्बान किये जाते है।
इस्लामिक महीने, ज़िल-हिज्जा की 10, 11 और 12 तारीख को ईद की नमाज़ के बाद क़ुरबानी की जाती है।
कुर्बानी सिर्फ मुस्लिमों के लिए है जो इस्लामी नियमों का पालन करते हैं।
कुर्बानी के मांस को गरीबों, रिश्तेदारों और खुद के लिए बांटा जाता है।
नहीं, कुर्बानी के माँस को तीन हिस्सों में बांटना बेहतर है – गरीबों, रिश्तेदारों और खुद के लिए।
बकरी/भेड़ कम से कम 1 साल, गाय और भैंस 2 साल और ऊँट 5 साल का होना चाहिए।
हां, अगर नियत सही हो और शरीयत के अनुसार हो तो यह मान्य है।ऑनलाइन पैसे भेजकर उसके जानवर की कुर्बानी करने के बाद माँस को गरीबो में बांटा जाता है।
ईद की नमाज़ के बाद सूरज निकलने के बाद से शाम तक कुर्बानी की जाती है।
हां, महिलाएं भी कुर्बानी करवा सकती हैं यदि वे सक्षम हैं।